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− | |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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− | |संग्रह=सौ गुलाब खिले / गुलाब खंडेलवाल
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− | [[category: ग़ज़ल]]
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− | <poem>
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− | कभी सर झुका के चले गए, कभी मुँह फिरा के चले गये
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− | मेरा साथ कोई न दे सका, सभी आये, आ के चले गये
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− | मुझे डूबने से उबार लें, कभी यह तो उनसे न हो सका
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− | मेरी भावना के कगार पर, वे लहर उठा के चले गये
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− | नहीँ एक ऐसे तुम्हीं यहाँ, जिसे प्यार मिल न सका कभी
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− | कई लोग पहले भी आये थे, यही चोट खा के चले गये
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− | जो गले में डोर-सी थी बँधी, उसे तोड़ तो न सका कोई
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− | कई छटपटा के चले गये, कई मुस्कुरा के चले गये
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− | मेरी ज़िन्दगी का निचोड़ था, कोई ऐसी-वैसी कथा न थी
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− | वही ज़िन्दगी जिसे प्यार से कभी तुम सजा के चले गये
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− | जो ह्रदय को प्यार का दुःख मिला, तो अधर को गीत की बाँसुरी
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− | उसी बाँसुरी के सुरों पे हम, कोई धुन सजा के चले गये
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− | वही पँखुरियाँ, वही बाँकपन, वही रंग-रूप की शोखियाँ
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− | वो गुलाब और ही था मगर, जिसे तुम खिला के चले गये
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− | उसे अपने मन के गरूर से, न सुना किसी ने तो क्या हुआ!
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− | वो ग़ज़ल किसी से भी कम न थी, जिसे हम सुना के चले गये
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− | <poem>
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