भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कमाल की औरतें २० / शैलजा पाठक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:10, 20 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम यहां रुको
मैं रुक गई
जल्दी चलो
मैं दौड़ पड़ी

किसी से कुछ मत कहना
मैं चुप रही
अब रोने मत लगना
मैंने आंसू पी लिए

देर से आऊंगा
मैंने दरवाज़े पर रात काट दी
खाने में €क्या?
मैंने सारे स्वाद परोस दिए

तुम्हारे चिल्लाने से
सहम जाते हैं मेरे बच्चे

मैं तुम्हें नाराज़ होने का
कोई मौका नहीं देती
और तुम मुझे जीने का।