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करमा का गीत / अरुण कमल

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|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
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चाँदनी में हिलती है परछाईं
 
कन्धों से कन्धों पर बँधते हैं हाथ
 
बँधती है पँखुड़ी से पँखुड़ी
 
जल की धार-सा फूटता है
 
एक साथ कण्ठों से राग
 
चौहट पारती हैं टोले की लड़कियाँ
 
उठते हैं स्वर
 
छितराती है धरती पर
 
राई-सी पाँवों की थाप
 
आज इस भादो एकादशी को
 
चाँदनी रात में
 
लगा जाती है बहन मेरी
 
सोच भरे ललाट पर रोली का टीका ।
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