भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करमा का गीत / अरुण कमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चाँदनी में हिलती है परछाईं

कन्धों से कन्धों पर बँधते हैं हाथ

बँधती है पँखुड़ी से पँखुड़ी

जल की धार-सा फूटता है

एक साथ कण्ठों से राग


चौहट पारती हैं टोले की लड़कियाँ

उठते हैं स्वर

छितराती है धरती पर

राई-सी पाँवों की थाप


आज इस भादो एकादशी को

चाँदनी रात में

लगा जाती है बहन मेरी

सोच भरे ललाट पर रोली का टीका ।