भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कर्जखोर / मोती बी.ए.

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मूड़ी गाड़ि के खा लेवे के बा
आँखि मूनि के पी लेवे के बा
टाँग पसारि के सूति रहे के बा
कर्जखोर!
कर्जा पर कर्जा लेत जाता
न सूदि देता
न मूढवे लवटावता
करमजरू,
जो एके लखेदि दीं त
सूदि समेत मूढ़ो मारल जाई
आ रहेदीं त
सूदि-मूढ़ के बाति के कहो
हमहीं उजरि जाइबि

हे भगवान
ए कर्जखोर से
हमार उद्धार कब होई!
28.05.93