भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कलेजा / राजेन्द्र देथा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे हृदयावरण का
अंगोच्छन कर पाया
मैंने इतना ही
कि "तुम्हारा प्रेम"
मेरे खातिर ही है जन्मों जन्मों तक!
शायद कलेजा कहा था आपने इसलिए ही।
पता था तुम्हें प्रेम में अद्भुत हो जाना
हम गिरते हर रोज अवसादों में
शाम फिर मीठी हो चलती
अक्सर तुम कहा करती
कि गहरे दुख प्रेम में नहीं
प्रेम की प्रस्तावना में कहीं अटके होतें हैं