भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कल्पना / दीपाली अग्रवाल

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 20 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपाली अग्रवाल |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 वहां लोग कहीं भी जा सकेंगे
किसी हवा के समान,
सरहदों का अस्तित्व नहीं होगा
मील के पत्थरों का भी नहीं।
एक ही होगा समूचे विश्व का नाम,
बहुत सोचने के बाद लगा कि
पृथ्वी रखा जाना चाहिए वह नाम,
पृथ्वी पर धर्म से कोई प्रेम नहीं होगा,
वहां प्रेम ही होगा धर्म
कभी कभी लगता है
कितनी कल्पना में रहते हैं कवि
फिर भी,
साथ तो रखने ही चाहिए कुछ स्वप्न
जो दिन की थकन के बाद
काम आते हैं,
पृथ्वी की कल्पना के लिए।