भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कल का दिन / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:58, 28 फ़रवरी 2008 का अवतरण
कल का दिन चला गया,
बिना प्यार-पौरुष के
छला गया,
हाथों से मला
और पांवों से दला गया ।
('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से)