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"कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा / इब्ने इंशा" के अवतरणों में अंतर

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कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा|
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कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा|
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कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा
  
हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए,
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हम भी वहीं मौजूद थे, हम से भी सब पूछा किए,
हम हँस दिए हम चुप रहे मंजूर था परदा तेरा|
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हम हँस दिए, हम चुप रहे, मंज़ूर था परदा तेरा
  
 
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटी महिफ़लें,
 
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटी महिफ़लें,
हर शख्स तेरा नाम ले हर शख्स दीवाना तेरा|
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हर शख़्स तेरा नाम ले, हर शख़्स दीवाना तेरा
  
कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएं मगर,
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कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगर,
जंगल तेरे पर्वत तेरे बस्ती तेरी सहरा तेरा|
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जंगल तेरे, पर्वत तेरे, बस्ती तेरी, सहरा तेरा
  
तू बेवफ़ा तू मेहरबां हम और तुझ से बद-गुमां,
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तू बेवफ़ा तू मेहरबाँ हम और तुझ से बद-गुमाँ,
हम ने तो पूछा था ज़रा ये वक्त क्यूं ठहरा तेरा|
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हम ने तो पूछा था ज़रा ये वक्त क्यूँ ठहरा तेरा
  
हम पर ये सख्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र,
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हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र,
रस्ता कभी रोका तेरा दामन कभी थामा तेरा|
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रस्ता कभी रोका तेरा दामन कभी थामा तेरा
  
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए,
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दो अश्क जाने किस लिए, पलकों पे आ कर टिक गए,
अल्ताफ़ की बारिश तेरी अक्राम का दरिया तेरा|
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अल्ताफ़ की बारिश तेरी अक्राम का दरिया तेरा
  
हाँ हाँ तेरी सूरत हंसी लेकिन तू ऐसा भी नहीं,
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हाँ हाँ, तेरी सूरत हँसी, लेकिन तू ऐसा भी नहीं,
इस शख्स के अशार से शोहरा हुआ क्या क्या तेरा|
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इस शख़्स के अश‍आर से, शोहरा हुआ क्या-क्या तेरा
  
बेशक उसी का दोश है कहता नहीं ख़ामोश है,
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बेशक, उसी का दोष है, कहता नहीं ख़ामोश है,
तू आप कर ऐसी दवा बीमार हो अच्छा तेरा|
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तू आप कर ऐसी दवा बीमार हो अच्छा तेरा
  
बेदर्द सुननी हो तो चल कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल,
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बेदर्द, सुननी हो तो चल, कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल,
आशिक़ तेरा, रुसवा तेरा, शायर तेरा, 'इन्शा' तेरा|
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आशिक़ तेरा, रुसवा तेरा, शायर तेरा, 'इन्शा' तेरा
 
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21:47, 26 अगस्त 2011 का अवतरण

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा ।
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तेरा ।

हम भी वहीं मौजूद थे, हम से भी सब पूछा किए,
हम हँस दिए, हम चुप रहे, मंज़ूर था परदा तेरा ।

इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटी महिफ़लें,
हर शख़्स तेरा नाम ले, हर शख़्स दीवाना तेरा ।

कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगर,
जंगल तेरे, पर्वत तेरे, बस्ती तेरी, सहरा तेरा ।

तू बेवफ़ा तू मेहरबाँ हम और तुझ से बद-गुमाँ,
हम ने तो पूछा था ज़रा ये वक्त क्यूँ ठहरा तेरा ।

हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र,
रस्ता कभी रोका तेरा दामन कभी थामा तेरा ।

दो अश्क जाने किस लिए, पलकों पे आ कर टिक गए,
अल्ताफ़ की बारिश तेरी अक्राम का दरिया तेरा ।

हाँ हाँ, तेरी सूरत हँसी, लेकिन तू ऐसा भी नहीं,
इस शख़्स के अश‍आर से, शोहरा हुआ क्या-क्या तेरा ।

बेशक, उसी का दोष है, कहता नहीं ख़ामोश है,
तू आप कर ऐसी दवा बीमार हो अच्छा तेरा ।

बेदर्द, सुननी हो तो चल, कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल,
आशिक़ तेरा, रुसवा तेरा, शायर तेरा, 'इन्शा' तेरा ।