भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 15

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:31, 16 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
(मारीचानुधावन)


पंचबटीं बर पर्नकुटी तर बैठे हैं रामु सुभायँ सुहाए।


सोहै प्रिया, प्रिय बंधु लसै ‘तलसी’ सब अंग घने छबि छाए।।

 
देखि मृगा मृगनैनी कहे प्रिय बेैन, ते प्रीतमके मन भाए।


हेमकुरंगके संग सरासनु सायकु लै रघुनायकु धाए।।


(इति अरण्य काण्ड )