भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता-6 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

Kavita Kosh से
कुमार मुकुल (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:41, 12 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: रास्‍ते में जब हमारी आंखें मिलती हैं मैं सोचता हूं मुझे उसे कुछ क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रास्‍ते में जब हमारी आंखें मिलती हैं मैं सोचता हूं मुझे उसे कुछ कहना था पर वह गुजर जाती है और हर लहर पर बारंबार टकराती एक नौका की तरह मुझे कंपाती रहती है- वह बात जो मुझे उससे कहनी थी यह पतझड़ में बादलों की अंतहीन तलाश की तरह है या संध्‍या में खिले फूलों सा सूर्यास्‍त में अपनी खुशबू खोना है

जुगनू की तरह मेरे हृदय में भुकभुकाती रहती है निराशा के झुटपुटे में अपना अर्थ तलाशती- वह बात जो मुझे उसे बतानी थी ।

अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल