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कविता फरमाइशी प्रोग्राम नहीं है / सरोज कुमार

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कवि नहीं है पंसारी
कि उसकी तराजू
तौले, ठीक
वैसा ही
जैसा मंडी में तुलता है!

उसके एक पलड़े में सूरज
और दूसरे में
तितली हो सकती है,
एक में कबूतर
और दूसरे में
पिस्तौल हो सकती है!

दरअसल जिसे आप
पंसारी मान रहे हैं
ये आपको ही तौल देगा
और आपके वजन की
पोल खोल देगा!

इसकी दुकान पर आप
यों ही
घूमते-फिरते निकल आया करें
उससे
खरीद-फरोख्त ना करें!
कहीं आप चाहें भजन
और ये आपको
ईश्वर के नाम का
मर्सिया दे दे!
आप माँगे लोरी
और ये आपको
टूटे सपनों का
कनस्तर बजाती हुई
नींद दे दे!
आपकी ख्वाहिस हो राष्ट्रगीत
और ये आपको
घूरे मे से बीनकर
सविंधान के पन्ने दे दे

माँगना मत उससे कुछ
यही अगर कुछ दे दे
तो ले लेना,
इस पंसारी का धंधा
आम नहीं है,
और कविता :
फरमाइशी प्रोग्राम नहीं है!