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"कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / गजानन माधव मुक्तिबोध" के अवतरणों में अंतर

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[[Category:लम्बी कविता]]
  
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* [[कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध]]
कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं
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* [[कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 2 / गजानन माधव मुक्तिबोध]]
'सफल जीवन बिताने में हुए असमर्थ तुम!
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* [[कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध]]
तरक़्क़ी के गोल-गोल
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* [[कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं / भाग 4 / गजानन माधव मुक्तिबोध]]
घुमावदार चक्करदार
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ऊपर बढ़ते हुए ज़ीने पर चढ़ने की
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चढ़ते ही जाने की
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उन्नति के बारे में
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तुम्हारी ही ज़हरीली
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उपेक्षा के कारण, निरर्थक तुम, व्यर्थ तुम!!'
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कटी-कमर भीतों के पास खड़े ढेरों और
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ढूहों में खड़े हुए खंभों के खँडहर में
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बियाबान फैली है पूनों की चाँदनी,
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आँगनो के पुराने-धुराने एक पेड़ पर।
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अजीब-सी होती है, चारों ओर
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वीरान-वीरान महक सुनसानों की
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पूनो की चाँदनी की धूलि की धुंध में।
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वैसे ही लगता है, महसूस यह होता है
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'उन्नति' के क्षेत्रों मे, 'प्रतिष्ठा' के क्षेत्रों में
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क्रमशः...
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20:56, 1 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण