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"कहानी में हमने हक़ीक़त बुनी है / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर

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कहानी में हमने हक़ीक़त बुनी है।
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ज़माने ने लेकिन कहाँ वो सुनी है।
  
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बहारों ने मुझको हँसाया-रुलाया,
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ग़नीमत है तुमने शराफ़त चुनी है।
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मुहब्बत न हारी किसी से कभी भी,
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ये  सच्चाई अब तक मगर अनसुनी है।
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दिया ले के तुम भी पुकारो, तलाशो!
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वो दीवाना है, वहशतों का धुनी है।
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अदब से नहीं ‘नूर’ ही सिर्फ़ वाकिफ़,
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बशर एक से एक बढ़कर गुनी है।
 
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22:20, 24 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

कहानी में हमने हक़ीक़त बुनी है।
ज़माने ने लेकिन कहाँ वो सुनी है।

बहारों ने मुझको हँसाया-रुलाया,
ग़नीमत है तुमने शराफ़त चुनी है।

मुहब्बत न हारी किसी से कभी भी,
ये सच्चाई अब तक मगर अनसुनी है।

दिया ले के तुम भी पुकारो, तलाशो!
वो दीवाना है, वहशतों का धुनी है।

अदब से नहीं ‘नूर’ ही सिर्फ़ वाकिफ़,
बशर एक से एक बढ़कर गुनी है।