भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहानी में हमने हक़ीक़त बुनी है / हरिराज सिंह 'नूर'

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:20, 24 अप्रैल 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहानी में हमने हक़ीक़त बुनी है।
ज़माने ने लेकिन कहाँ वो सुनी है।

बहारों ने मुझको हँसाया-रुलाया,
ग़नीमत है तुमने शराफ़त चुनी है।

मुहब्बत न हारी किसी से कभी भी,
ये सच्चाई अब तक मगर अनसुनी है।

दिया ले के तुम भी पुकारो, तलाशो!
वो दीवाना है, वहशतों का धुनी है।

अदब से नहीं ‘नूर’ ही सिर्फ़ वाकिफ़,
बशर एक से एक बढ़कर गुनी है।