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"कहा -- सुनी भगवानसे / बेढब बनारसी" के अवतरणों में अंतर

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22:52, 20 मई 2010 के समय का अवतरण


मुरली को राधिका के कर में सुपुर्द कर,
हाथ में हवाना का सिगार एक लीजिये.
दूध-दही-माखन को करके सलाम आप,
प्रात:काल चाय रात काकटेल पीजिये.

कूबरी औ राधिका को शीघ्र ही डिवोर्स कर,
सिनेमा-स्टार संग लेके रास कीजिये.
माथ प्लेन लेके नाथ उड़िए उसीपर, है
गरुड़ पुराना उसे गोली मार दीजिये

रास रंग गोपी-संग भूल जाते सारा तुम,
होती बेकारी और होता यदि ठाला तुम्हें.
छूट जाती चोरी सब दही छाछ माखन की,
यू. पी. की पुलिससे पड़ता जो पाला तुम्हें.

देखते उठाना गोबरधन तुम्हारा हम,
मिलता जो खानेको घी भी घासवाला तुम्हें.
गोकुल को छोड़ आज मथुराको जाते यदि,
तुरत तलाक दे देतीं ब्रजबाला तुम्हें.

बाँसुरीको बहा देते यमुना में वंशीधर,
सुन पाते आप जो कहीं से ध्वनि बैंडकी.
फेंकते सुदर्शन-चक्र रद्दी की टोकरी में,
सिगरेट से शोभा बढ़ाते निज हैंड की

सिनेमा को देख भूल जाते ब्रज-वीथियोंको
भूल जाते गीता, देख नीति इंगलैंड की.
टेम्ज़के किनारे के सैंड देख ब्रज-रजको,
भूल जाते याद नहीं आती निज लैंड की.
 
मोरपंख मुकुट है जंगली तुम्हारा यह,
काले केश ऊपर मैं हैट धरवाऊँगा.
काछनी, दुपट्टा, बनमाल, लाल, सभ्य नहीं,
लंदन का सूट, गले टाई पहनाऊँगा.

बंगले में मुझको सिंहासन मिलेगा नहीं,
कौच है चमड़े की उसपर बैठाऊँगा.
बीसवीं सदी का ग्रेजुएट युवक हूँ एक,
अपटूडेट होंगे तब मस्तक नवाऊँगा.
 
राजनीति वाले हम देखते तुम्हारी नीति,
द्वारिका में होते यदि मस्जिद, शिवाला.
गीता की तुमको भूल जाती फिलासफी सब,
अलिफ़-बे पढ़ना जो पड़ता नंदलाला.
 
देखते हम कैसे निपटती है वंशीधर,
मिलता तुम्हें जो कोइ आई. सी. एस. वाला
होते यदि बीसवीं सदी में आज भारत में,
पूछता न कोई जग कहता तुम्हें काला.

निश्चय ही त्याग देते दही छाछ माखन भी,
पाते यदि कहीं आप बिस्कुट औ व्हिस्की
छोड़ देते राधिका को, कूबरी को, रुक्मणी को
देखते जो सूरत सुलोचना सी मिस की

नाम से मुसोलिनी के भाग जाते रन छोड़,
जिसका विरोध करे हिम्मत है किसकी
भागते यशोदा गोद हिटलर की बातें सुन,
यूरप थर्राता है गरज सुन जिसकी