भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कहो किसकी भूल ! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
[[Category:चोका]] | [[Category:चोका]] | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
+ | '''मिले न कूल''' | ||
+ | कहो किसकी भूल | ||
+ | ठोकरें खाईं | ||
+ | जीवन भर चले | ||
+ | साँझ -से ढले | ||
+ | प्रहार आतप के | ||
+ | सहते रहे | ||
+ | किनारा छूट गया | ||
+ | बहते रहे | ||
+ | जिनको प्यार किया | ||
+ | उनकी घृणा | ||
+ | सदैव पीते रहे | ||
+ | मृत्यु पर्व -सा | ||
+ | जीवन जीते रहे | ||
+ | मन में रहे | ||
+ | जो एक प्राण बन | ||
+ | चोटें उन्हीं की | ||
+ | पड़ी थीं बार -बार | ||
+ | घाव न भरे | ||
+ | शब्द-बाण बींधते | ||
+ | रिश्तों की फाँसी | ||
+ | गले में पड़ी रही | ||
+ | दर्द ही मिला। | ||
+ | रुलाती हर घड़ी | ||
+ | नरक-सी ज़िन्दगी। | ||
-0- | -0- | ||
</poem> | </poem> |
14:15, 21 जून 2018 के समय का अवतरण
मिले न कूल
कहो किसकी भूल
ठोकरें खाईं
जीवन भर चले
साँझ -से ढले
प्रहार आतप के
सहते रहे
किनारा छूट गया
बहते रहे
जिनको प्यार किया
उनकी घृणा
सदैव पीते रहे
मृत्यु पर्व -सा
जीवन जीते रहे
मन में रहे
जो एक प्राण बन
चोटें उन्हीं की
पड़ी थीं बार -बार
घाव न भरे
शब्द-बाण बींधते
रिश्तों की फाँसी
गले में पड़ी रही
दर्द ही मिला।
रुलाती हर घड़ी
नरक-सी ज़िन्दगी।
-0-