भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कह्र ढाया है वो उड़ानो ने / ज्ञान प्रकाश पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कह्र ढाया है वो उड़ानो ने,
ख़ुदकुशी कर ली आसमानो ने।

तुम यक़ीं कर सकोगे बतलाऊँ,
धूप उगली है सायबानो ने।

घिघ्घियाँ बँध गईं शरारों की,
चुप्पियाँ तोड़ी ख़ाकदानो ने।

मेजबां यूँ न हो गए पत्थर,
गलतियाँ की हैं मेहमानों ने।

हर इदारे से बू सियासत की,
चैन लूटा है हुक्मरानो ने।