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काँकर उप्पर काँकरी (भात का गीत) / खड़ी बोली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

भात का गीत


काँकर ऊपर काँकरी, मेरी मैया रे जाए

मैं थारै आई पावहणी

जो मेरा रखोगे मान रे , मेरी मैया रे जाए

-मान राखैगी तेरी मायड़ी

जिसकी तू लाडो धीयड़ रे

-मायों के राखै न रहै ,
बीरणों की लम्बी पंसाल रे, , मेरी मैया रे जाए

-जिब हम घर के नित छोटे

जिब क्यूं नी करा था बुहार, , मेरी मैया री जाइ

-इब तुम घर के लखपति

इब हमनै कर्या बुहार रे राम, मेरी मैया रे जाए

फलसे का गाड्डा बेच कै

, मेरी मैया रे जाए ,तौं मेरे मँढ़ा चढ़ आइ रे

फलसे का गाड्डा ना बिकै, मेरी मैया री जाइ
- फलसे की सोभा जाइ रे राम …।

-खूँटे की भुरिया बेच कै मेरी मैया रे जाए
- तौं मेरे मँढा चढ़ आवै

-खूँटे की भुरिया ना बिकै

खूंटे की सोभा जाइ रे , मेरी मैया री जाइ

-भावज का हँसला बेचकै

तौं मेरे मँढा चढ़ आवै तौं मेरे मँढा चढ़ आवै

-भावज का हँसला ना बिकै

हँसला तो बहू के बाप का , मेरी मैया री जाइ

…………