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कांई थांको नांव / सतीश गोल्याण

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अेक दिन सोचतां-सोचतां
सोचण लाग्यो,
बास री सगळी लुगायां
चावै बा काकी लागै
चावै बा ताई लगै, दादी लागै
बां‘रो कांई नांव है ?
आ, जाणन आरी कदै सोई ई कोनी!
परथावो हुंवता ईं बां‘री
कीं‘रै न कीं‘रै साथ जुड़गी
सगळा सूं पैलां बा हुई
ख्याली री बीनणी
बीं सूं पाछै बा बणी
सुरजै री घरआळी
अर छैकड़ बा बणी
बा ईंया ई बिना नांव रै
सुरगां सिधारगी
पण अजताणी बास में
बीं‘रो नांव, कुण ई नीं जाणै।