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कागज बीनता बच्चा / राकेश प्रियदर्शी

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कूड़े के ढेर से कागज बीनता बच्चा

पूरा का पूरा हिंदुस्तान की जीती-जागती तस्वीर है

कागज बीनता बच्चा हमारी वर्तमान व्यवस्था

की पोल खोल रहा है


उसके फटे-चीटे कपड़े देख कर भी हम

स्वच्छ और विकसित होने की कर रहे हैं

घोषनाएं अगले दशक के अंत तक


उसकी भूख से सटी हुई आंतों और गालों पर

सूखे हुए आंसुओं के निशान से

हम लिख रहे हैं भारत का इतिहास


कूड़े के ढेर से कागज बीनता बच्चा

बाजार के विरुद्ध एक चीख है


हम कर रहे हैं जिस कूड़े के ढेर से घृणा

वही उसका सपना है

भारत का सपना

भारत का भविष्य और कूड़े का ढेर!


कूड़े के ढेर से कागज बीनता बच्चा

कूड़े के ढेर पर सफ़ेदी की ऊंचाई नाप रहा है अपनी आंखों से

कूड़े के ढेर की खोज में भटकता बच्चा

कोसों नंगे पांव चलता है पीठ से बोरा लटकाए

बोरे के वजन में उसके पूरे परिवार की

रोटी की संख्या छिपी है

कहां-कहां नहीं कूड़े के ढेर से मिलती है

उसे रोटी की गंध!


कूड़े के ढेर से कागज बीनते बच्चे के बारे में सोचता हूं

यह हम सब पर निर्भर करता है कि वह

भविष्य का निर्माता बनेगा या विध्वंसकारक