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काजल / उषा उपाध्याय

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मैं जन्मी तब
छठी के दिन
नानी ने तांबे की तश्तरी दीये पर रखकर
बडी उमंग से
काजल बना कर
मेरी आँखों में लगाया था ।

अभी पिछले साल ही
मेरी बेटी के घर बेटी जन्मी
तब मैंने भी
छठी के दिन
उमंग के साथ काजल बनाकर
अपनी दौहित्री की
स्वप्नभरी आँखों में लगाया था ।

आज,
इस ढलती साँझ में
आगजनी में जलकर
काले स्याह हो गए
अपने शहर के मकानों को देखकर
मन में आता है

किसकी छठी के लिए
बनाया गया है
इतना सारा काजल ?

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं कवयित्री द्वारा