भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काटि कसइली मिलाइ के चूना तहाँ हम बैठि के पान लगाइब / मन्नन द्विवेदी 'गजपुरी'

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 28 सितम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काटि कसइली मिलाइ के चूना तहाँ हम बैठि के पान लगाइब।
फागुन में जो लगी गरमी तोहके अँचरा से बयार डुलाइब।।
बदर जो बरसे लगिहें तोहसे बछरु घरवा में बन्हाइब।
भींजि के फागुन के बरखा तोहके हम गाके मलार सुनाइब।।