भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कारे कजरारे सटकारे घुँघवारे प्यारे / घासीराम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:03, 15 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घासीराम }} <poem> कारे कजरारे सटकारे घुँघवारे प्यार...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कारे कजरारे सटकारे घुँघवारे प्यारे ,
मणि फणि वारे भोर फबन लौँ ऊटे हैँ ।
बासे हैँ फुलेल ते नरम मखतूल ऎसे ,
दीरघ दराज ब्याल ब्यालिन लौं झूठे हैँ ।
घासीराम चारु चौंर जमुना सिवार बोरोँ ,
ऎसी स्याम्ताई पै गगन घन लूटे हैँ ।
छाई जैहै तिमिर बिहाय रैनि आय जैहै ,
झारि बाँध अजहूँ सभाँर वार छूटे हैँ ।


घासीराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।