भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काली लड़की / कुमार अंबुज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार अंबुज |संग्रह=किवाड़ / कुमार अंबुज }} '''काली लड़की...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:19, 3 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
काली लड़की
अपने सामाजिक अंधकार से निकलकर
एक काली लड़की
मेरे स्वप्न के उजास में प्रवेश करती है
उजास में रात की कालिमा घुल जाती है
दमकती है काली लड़की की देह
सप्त-धातु की बेजोड़ मूर्ति की तरह
चमकता है काली लड़की का शिल्प
बारिश में बिजली की तरह मुस्कराती है वह
हंसों की एक पंक्ति काले आसमान से गुज़र जाती है
काली लड़की की आँखें गहरी काली हैं
वे मेरे स्वप्न की सुरक्षा से बाहर नहीं आना चाहतीं
उन आँखों में गौर-वर्ण के अनुभवों का
ठोस अँधेरा है
जो लड़की के उजले सपनों में टूट-टूटकर गिरता है
एटलस की तरह घूमती हुई रात्रि हर बार
मेरे स्वप्न के अफ्रीका पर आकर
ठहर जाती है।
(1990)