भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काशी गो छोरौ / राजेन्द्र देथा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:13, 29 नवम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र देथा |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काशी गो छोरौ
आवै स्यैर स्यूं गांव
चंद्रयान परछेपण आले दिन
काशी उण री ऊडीक मांय
टेशण माथै बैठ्यौ फूंकै
बीड़ी माथै बीड़ी लारला दो घंटां ऊं

छोरौ आंवतौ इ पगां लाग'र
बतावै बापू नै-
"बापू आज आपणै देस
चांद माथै राकेट भेजण री खेचल करी है"

काशी इण बात नै
पांचवी बीड़ी सागै उडाय'र केवै-
"दरडे़'म जावै चांद अर दूजै'म देस
तू तो ओ बता नै'र मांय पाणी कद आसी?

"कीं पतौ?