भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

का कहीं / अनिल ओझा 'नीरद'

Kavita Kosh से
Jalaj Mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:35, 8 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBhojpuriRachnak...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तार तार लूँगा बा, झूला बा, का कहीं ?
देहिं तोपल-ढांकल त मुश्किल बा,का कहीं??

माथ पर ईंटा, कबों सिरमिट के तागड़ी बा ।
आँखि में लोर,मन में पीरा बा, का कहीं ??

कबों-कबों,किस्मति के पत्थरो ऊ तूरति बा ।
मजदूरिनि ह,काम त करहीं के बा,का कहीं??

भर देहिं पसेना बा,कपड़ा बा लदर- फदर ।
झंखति बा,झुरवति बा,लड़ति बा, का कहीं??

जिनिगी से जूझति बा, बंजर जमीनि अइसन।
अपने ले नइखे नूँ,माइयो बा, का कहीं ??

फाटल लूगा-झूला से,जवान देहिं झांकि जाता।
बूढो मजूरा तक , निहारता, का कहीं ??

घोंट-घोंट खून पियत,दिन कइसो कटि जाता।
राति,जार-जार रोवत बीतत बा, का कहीं ??