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|रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री
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अश्रु-'कण' कहकर जिसे
सूक्ष्म रूप धरे वही था -
स्वप्न-सुख की आस में
वह गया नित लौट -
शत-शत बार आकर पास !
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