भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितने भ्रम / रेखा

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:45, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा |संग्रह=चिंदी-चिंदी सुख / रेखा }} <poem> रास्ते ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रास्ते के बीचों-बीच
पूछने लगता है एक पाँव
दूसरे से
तुम आ रहे हो
या जा रहे हो?

पाँवों की गति हो जाती है
कील पर घूमती मछली की आँख
अब बिंधी
तब बिंधी

छाया भ्रम है क्या?

तो फिर
छाया बींधने से
बिंधी कैसे
मछली की आँख-

न जाने कब उलझ जाती है
मेरी काया से एक छाया
समय का धनुर्धर
प्रत्यंचा साधे
बींधता है परछाईं
बींधी जाती हूँ
मैं