"कितने शीघ्र हम आ गये हैं नदी के किनारे!, / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुमकुम के छींटे / गुलाब ख…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
सुन्दर, चटकीले परिधान में सजे, | सुन्दर, चटकीले परिधान में सजे, | ||
अभी थोड़ी देर पूर्व ही तो | अभी थोड़ी देर पूर्व ही तो | ||
− | साथी अनेक आ जुटे थे गिल्लीडंडे, पतंग, गोलियाँ | + | साथी अनेक आ जुटे थे गिल्लीडंडे, पतंग, गोलियाँ लिये, |
खेल के सामान सभी न्यारे थे, | खेल के सामान सभी न्यारे थे, | ||
कभी हम जीते, कभी हारे थे. | कभी हम जीते, कभी हारे थे. | ||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
और आ गया है अब नदी का यह किनारा | और आ गया है अब नदी का यह किनारा | ||
− | + | जहाँ चरण स्वयं रुक-से गए हैं, | |
− | + | जहाँ पथ-चिह्न सभी चुक-से गए हैं, | |
− | धारा बस एक आगे | + | धारा बस एक आगे बहती है |
शीतल, निर्मल, पारदर्शी, | शीतल, निर्मल, पारदर्शी, | ||
'पास आ, पास आ' कहती है, | 'पास आ, पास आ' कहती है, |
02:43, 17 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
कितने शीघ्र हम आ गये हैं नदी के किनारे
कितने शीघ्र! कितने शीघ्र!
माना, यह मार्ग इसी ओर आता था,
माना प्रति-चरण हमें इधर ही बढ़ाता था,
ढाढ़स देने को कोई कुछ भी कह ले
फिर भी यह सच है कि आ गया है नदी का तीर
अपने समय से बहुत पहले.
अभी थोड़ी देर पूर्व ही तो
हम घर से निकले थे
सुन्दर, चटकीले परिधान में सजे,
अभी थोड़ी देर पूर्व ही तो
साथी अनेक आ जुटे थे गिल्लीडंडे, पतंग, गोलियाँ लिये,
खेल के सामान सभी न्यारे थे,
कभी हम जीते, कभी हारे थे.
अभी थोड़ी देर पूर्व ही तो
पड़ोसी गाँव की किशोरी, गोरी,
'नयन विशाल, भाल दिए रोरी'
आयी थी सबकी आँख बचाकर
खेलने हमसे 'होरी'.
और आ गया है अब नदी का यह किनारा
जहाँ चरण स्वयं रुक-से गए हैं,
जहाँ पथ-चिह्न सभी चुक-से गए हैं,
धारा बस एक आगे बहती है
शीतल, निर्मल, पारदर्शी,
'पास आ, पास आ' कहती है,
कितना भी जी धड़के,
तन सिहरे, मन भड़के,
इसमें नहाये बिना मुक्ति नहीं,
कितना भी प्रिय लगता हो अपना गाँव,
बिना स्नान किये घर लौटने की युक्ति नहीं.