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सुन्दर, चटकीले परिधान में सजे,
अभी थोड़ी देर पूर्व ही तो
साथी अनेक आ जुटे थे गिल्लीडंडे, पतंग, गोलियाँ लिएलिये,
खेल के सामान सभी न्यारे थे,
कभी हम जीते, कभी हारे थे.
 
और आ गया है अब नदी का यह किनारा
जहां जहाँ चरण स्वयं रुक-से गए हैं,जहां जहाँ पथ-चिह्न सभी चुक-से गए हैं,धारा बस एक आगे बढ़ती बहती है
शीतल, निर्मल, पारदर्शी,
'पास आ, पास आ' कहती है,
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