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Kavita Kosh से
सुन्दर, चटकीले परिधान में सजे,
अभी थोड़ी देर पूर्व ही तो
साथी अनेक आ जुटे थे गिल्लीडंडे, पतंग, गोलियाँ लिएलिये,
खेल के सामान सभी न्यारे थे,
कभी हम जीते, कभी हारे थे.
और आ गया है अब नदी का यह किनारा
शीतल, निर्मल, पारदर्शी,
'पास आ, पास आ' कहती है,