भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किरसाण / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खेत मांय
इन्नै-उन्नै गिणती रा
बळ्योड़ा सा
बाजरी रा बूँटा
अर काचर-मतीरड़्यां री
अळसायोड़ी बेलां नै
निरखतौ-पळंूसतौ
सियाळै-उन्याळै
ठरतौ-बळतौ
चळू-चळू सींचतौ
टाबरां नै पधेड़्यां चढायां
टैम-बेटैम बिलमांवतौ
बावळैतरियां उभाणै पगां भाजतौ
अर आंख्यां फाड़तौ
इण रेत रै संमदर मांय
कांईं जोवै
आ' नान्ही सी ज्यान
औ' मुड़दल सो किरसाण ।