भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किरिनियाँ कहाँ चलि जाले? / अनिरुद्ध तिवारी 'संयोग'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारी सोनहुली सबेर झमका के,
सँवकेरे रूप के अँजोर छिटिका के,
जाये का बेर ढेर का अगुताले-
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?
चलत-चलत बीच रहिया में हारल,
दुपहरिया तेज तिजहरिया के मारल,
धनि बँसवरिया का पाछे लुकाले!
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?
दिनभर का जिनगी के कहते कहनियाँ,
जात कहीं फुनुगी पर छोड़त निशनियाँ,
काहे दो सकुचाले काहे लजाले!
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?
चिरई-चुरुंगवा जे लेला बसेरा,
डाले चराऊर खोंता में डेरा,
सँझलवके नदिया किनारे नहाले!
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?