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किसने आज प्रणय-बंधन को टूक-टूक कर डाला / रामेश्वरीदेवी मिश्र ‘चकोरी’

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किसने आज प्रणय-बंधन को टूक-टूक कर डाला?
अरे-अरे! उसका दी किसने जीवन को यह ज्वाला!
आँसू नहीं, हृदय के टुकड़े हैं, या मूक निराशा।
सुख-स्वप्नों ने हाय! पिलाया मुझको विष का प्याला॥
वही धर्म था, वही प्राण था, मेरा वही खजाना।
उसके बिना व्यर्थ कहलाता है सिंदूर सजाना॥

देख, देख, ओ निठुर! देश शून्य हृदय दर्पण में।
डाल दिया तूने परदा जीवन के प्रथम चरण में॥
अरे, न देखा एक बार वह प्रेम अलौकिक मेरा।
दलित कर दिया, कुचल दिया उन इच्छ्वाओं को क्षण में॥
भोलेपन में उलझ, न समझा वह उपहास अनोखा।
कैसी थी वह जटिल पहेली, कैसा निर्गम धोखा।

निद्रा थी या तंद्रा थी अथवा अचेतना गहरी।
अरे, अचानक उठी भ्रान्ति की कैसी भीषण लहरी!
भूल कि जिसमें समझ न पाई सर्वनाश की घड़ियाँ।
किस अनंत मंे लीन हुई दुनियाँ वह सुखद, सुनहरी॥
किसने शांति छीन अंतर में हाहाकार मचाया।
किसने मेरे मधुर हास्य पर डाली काली छाया॥

मुझ निर्धन का चुरा लिया धन किस छलिया ने, बोलो।
हँसी हँसी में या कि सत्यही, यह रहस्य अब खोलो॥
ला भाई! ला, वह विभृति मेरी मुझको लौटा दे।
अपनी हँसी और दुख मेरा सोचो, समझो तोलो!
अरे द्रव्य-लोलुप समाज! अविवेकी! अत्याचारी।
कठिन रूढ़ियों में जकड़ी क्यों तेरी ममता सारी!

सुन पड़ता अभ्यन्तर में जब व्यथा-पूर्ण संगीत।
नेत्रों के सम्मुख नचता जब वैभव-पूर्ण अतीत॥
ढक देती जब सुख-स्वप्नों को, धूमिल मीठी आह।
कर देता है सर्वनाश का, अन्धकार भयभीत॥

क्षण भर के ही लिए सही, पर कुछ तो रख लो मान।
शूरों की उजड़ी समाधि पर दो फूलों का दान॥

शब्द ‘प्रेम’ का सुना न जिसने, लेकर जग में जन्म।
क्यों न तुम्हीं से आज प्रणय का, पा जाये कुछ ज्ञान॥

कभी-कभी सोचा करती हूँ ‘‘यह संसार असार’’।
कौन यहाँ अपना, जीवन भी दुःखद कारागार॥
मर्मभरी वाणी में कहती, सोई स्मृति सस्नेह।
‘‘पगली खोज शक्ति तू अपनी, अपना वैभव प्यार’’॥