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किसान एकता / माधवप्रसाद गुप्त

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जुर मिलके रहवगा किसान
बैल ला मिठाइ डारीगा ॥ जुर मिल ॥

आजा ही सोनहा बिहान, दुख-सुख ला बांट डारी गा।
गांव भर के ठेनील, जुर मिल टरकाबो
पंच ल बैठाय जम्मो, झगरा निपटाबो
हमर पंच हवय भगवान, जमोल बनाइ डारी गा।

खेत म बीज बोवा खुर्रा म जोत के
नरवा नदिया ला, बांध देवा कोड़ के
भर जाही पानी झमाझम, गढ़वा का पाट डारी गा।
डोंगरी ल पोथ करव, रुखवा लगाइ के

डहर का बनाइ डारा, जांगर टोराइ के
आही तो कैसे गा दुकाल, जांगर कापेर डारी गा।
चार बैइठे जिनिस पाबो, सहकारी बनाइके
नाव का बिसार देबो, बेरीं महंगाई के

खेत म बोवा बोनी धान, सोन्ना उपजाई डारी गा
पढे लिखे बार जाबो, गाँव के मंदर सा
भारत जम्मो एक होही, बन जाही थरसा
घी दूध कोठी भर धान, भूख ला मिटाइ डारी गा