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"किसी तरह तो बयाँ हर्फ़े आरज़ू करते / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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किसी तरह तो बयाने-हर्फ़े-आरज़ू<ref>मनोकामना का वर्णन</ref>करते
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किसी तरह तो बयाँ<ref>वर्णन
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</ref>हर्फ़े-आरज़ू<ref>मनोकामना</ref>करते
 
जो लब मिले थे तो आँखों से गुफ़्तगू<ref> बातचीत</ref>करते
 
जो लब मिले थे तो आँखों से गुफ़्तगू<ref> बातचीत</ref>करते
  

07:25, 20 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण


किसी तरह तो बयाँ<ref>वर्णन
</ref>हर्फ़े-आरज़ू<ref>मनोकामना</ref>करते
जो लब मिले थे तो आँखों से गुफ़्तगू<ref> बातचीत</ref>करते

बस एक नारा-ए-मस्ताँ<ref>मस्तों का नारा</ref>दरीदा-पैरहनो<ref>फटे-हाल वालो</ref>
कहाँ के तोक़ो-सिलासिल<ref>बेड़ियों की जकड़</ref>बस एक हू <ref>मस्ती की दशा में ‘आह’ </ref>करते

कभी तो हम से भी ऐ साकिनाने-शहरे-ख़याल<ref>चिंतन-नगर के वासियो</ref>
थके-थके हुए लहजे में गुफ़्तगू करते

गुलों-से<ref>फूलों जैसे</ref>जिस्म थे शाख़े-सलीब<ref>सूली जैसी टहनी</ref>पर लरज़ाँ<ref>काँपते हुए</ref>
तो किस नज़र से तमाशा-ए-रंगो-बू <ref>रंग व गंध का खेल</ref>करते

बहुत दिनों से है बे-आब<ref>सूखी हुई</ref>चश्मे-ख़ूँ-बस्ता<ref>क्रुद्ध-नेत्र</ref>
वगरना हम भी चराग़ाँ <ref>दीप-प्रज्ज्वलन</ref>किनारे जू<ref>नदी के किनारे</ref>करते

ये क़ुर्ब<ref>सामीप्य</ref>मर्गे-वफ़ा<ref>वफ़ा की मृत्यु</ref>है अगर ख़बर होती
तो हम भी तुझसे बिछड़ने की आरज़ू<ref>मनो-कामना</ref>करते

चमन-परस्त<ref>उद्यान -प्रेमी</ref>न होते तो ऐ नसीमे-बहार<ref>बसंती हवा</ref>
मिसाले-बर्गे-ख़िज़ाँ<ref>पतझड़ के पत्ते की भाँति</ref>तेरी जुस्तजू <ref>तलाश,चाहत</ref>करते

हज़ार कोस पे तू और ये शाम ग़ुर्बत <ref>परदेस</ref>की
अजीब हाल था पर किससे गुफ़्तगू करते

‘फ़राज़’ मिस्र-ए-आतिश<ref>‘आतिश’ की ग़ज़ल की एक पँक्ति</ref>पे क्या ग़ज़ल करते
ज़बाने-ग़ैर<ref>दूसरे की भाषा</ref>से क्या शरहे-आरज़ू<ref>मनो-कामना की अभिव्यक्ति</ref>करते

शब्दार्थ
<references/>