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Kavita Kosh से
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किसी बेरहम के सताए सताये हुए हैं बड़ी चोट सीने पे खाए खाये हुए हैं
हरेक रंग में उनको देखा है हमने
कोई तो किरण एक आशा की फूटे
अँधेरे बहुत सर उठाये हुए हैं
गुलाब उनके चरणों में पहुंचे पहुँचे तो कैसे!सभी और कांटें बिछाए ओर काँटें बिछाये हुए हैं
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