भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
किसी बेरहम के सताए सताये हुए हैं बड़ी चोट सीने पे खाए खाये हुए हैं
हरेक रंग में उनको देखा है हमने
उन्हीं के उन्हींके जलाए-बुझाए बुझाये हुए हैं
कोई तो किरण एक आशा की फूटे
अँधेरे बहुत सर उठाये हुए हैं
जहां जहाँ चाँद, सूरज है, तारें हैं लाखोंदिया एक हम भी जलाए जलाये हुए हैं
गुलाब उनके चरणों में पहुंचे पहुँचे तो कैसे!सभी और कांटें बिछाए ओर काँटें बिछाये हुए हैं
<poem>
2,913
edits