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"किसी बेरहम के सताये हुए हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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11:42, 22 मई 2010 का अवतरण


किसी बेरहम के सताए हुए हैं
बड़ी चोट सीने पे खाए हुए हैं

हरेक रंग में उनको देखा है हमने
उन्हीं के जलाए-बुझाए हुए हैं

कोई तो किरण एक आशा की फूटे
अँधेरे बहुत सर उठाये हुए हैं

जहां चाँद, सूरज है, तारें हैं लाखों
दिया एक हम भी जलाए हुए हैं

गुलाब उनके चरणों में पहुंचे तो कैसे!
सभी और कांटें बिछाए हुए हैं