भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किस क़दर सीधा सहल साफ़ है यह रस्ता देखो / गुलज़ार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:00, 24 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार }} <poem> किस क़दर सीधा सहल साफ़ है यह रस्ता ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किस क़दर सीधा सहल साफ़ है यह रस्ता देखो
न किसी शाख़ का साया है, न दीवार की टेक
न किसी आँख की आहट, न किसी चेहरे का शोर
न कोई दाग़ जहाँ बैठ के सुस्ताए कोई
दूर तक कोई नहीं, कोई नहीं, कोई नहीं

चन्द क़दमों के निशाँ, हाँ, कभी मिलते हैं कहीं
साथ चलते हैं जो कुछ दूर फ़क़त चन्द क़दम
और फिर टूट के गिरते हैं यह कहते हुए
अपनी तनहाई लिये आप चलो, तन्हा, अकेले
साथ आए जो यहाँ, कोई नहीं, कोई नहीं
किस क़दर सीधा, सहल साफ़ है यह रस्ता