भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

की बाजु ? / मार्कण्डेय प्रवासी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
सौंसे गाम-
बताए लगैए, की बाजू ?
ओझा-बैद कटाह लगै, की बाजू ?
अछि सभटा-
पोखरि-इनारमे दूषित जल,
गाम-बिरिछ मरखाह लगैए, की बाजू ?
ककरासँ-
घासक याचना करत पठरू ?
चिकबे-सन चरबाह लगैए, की बाजू ?
बनिक’ बाज-
नछौरैए सूगा-मैना,
तन-मन-प्राण घबाह लगैए, की बाजू ?

जकरे पर-
विश्वास करी, से हबकैए;
वातावरण तवाह लगैए, की बाजू ?
जाठि चिबा-
जल पीबि गेल पोखरि, तैयो
सागर-जकाँ अथाह लगैए, की बाजू ?
भ’ रहलै अछि-
कदाचार सगरो विजयी,
हारल-सन उत्साह लगैए, की बाजू ?