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कुंआं / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

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उलीच उलीच कर

मैंने एक दिन

खाली कर

दिया था कुंआं --

लगता था

अब कुछ

उभर कर

न आएगा -

खाली- बाल्टी

खाली घडा

ऊपर आएगा ...

पर देखा

रोज शतदल की

नाक की तरह

उल्टा -दीख कर भी

घडा

सीधा  -सीधा

फिर भर कर

उभर आता है ....