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"कुछ ऐसा खेल रचो साथी / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर

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कुछ ऐसा खेल रचो साथी
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कुछ ऐसा खेल रचो साथी!
 
कुछ जीने का आनंद मिले
 
कुछ जीने का आनंद मिले
 
कुछ मरने का आनंद मिले
 
कुछ मरने का आनंद मिले
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दुनिया के सूने आँगन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
  
दुनिया के सूने आँगन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी
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वह मरघट का सन्नाटा तो रह-रह कर काटे जाता है
 
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दुःख दर्द तबाही से दबकर, मुफ़लिस का दिल चिल्लाता है
वह मरघट का सन्नाटा तो रह रह कर काटे जाता है
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दुःख दर्द तबाही से दबकर, मुफलिस का दिल चिल्लाता है
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यह झूठा सन्नाटा टूटे
 
यह झूठा सन्नाटा टूटे
 
पापों का भरा घड़ा फूटे
 
पापों का भरा घड़ा फूटे
तुम जंजीरों की झनझन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी
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तुम ज़ंजीरों की झनझन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
  
यह उपदेशों का संचित रस तो फीका फीका लगता है
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यह उपदेशों का संचित रस तो फीका-फीका लगता है
सुन धर्म कर्म की ये बातें दिल में अंगार सुलगता है
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सुन धर्म-कर्म की ये बातें दिल में अंगार सुलगता है
चाहे यह दुनियां जल जाये
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चाहे यह दुनिया जल जाए
 
मानव का रूप बदल जाए
 
मानव का रूप बदल जाए
तुम आज जवानी के क्षण में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी
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तुम आज जवानी के क्षण में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
  
यह दुनियां सिर्फ सफलता का उत्साहित क्रीड़ा कलरव है
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यह दुनिया सिर्फ सफलता का उत्साहित क्रीड़ा-कलरव है
 
यह जीवन केवल जीतों का मोहक मतवाला उत्सव है
 
यह जीवन केवल जीतों का मोहक मतवाला उत्सव है
 
तुम भी चेतो मेरे साथी
 
तुम भी चेतो मेरे साथी
 
तुम भी जीतो मेरे साथी
 
तुम भी जीतो मेरे साथी
संघर्षों के निष्ठुर रण में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी
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संघर्षों के निष्ठुर रण में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
  
 
जीवन की चंचल धारा में, जो धर्म बहे बह जाने दो
 
जीवन की चंचल धारा में, जो धर्म बहे बह जाने दो
 
मरघट की राखों में लिपटी, जो लाश रहे रह जाने दो
 
मरघट की राखों में लिपटी, जो लाश रहे रह जाने दो
कुछ आंधी अंधड़ आने दो
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कुछ आँधी-अंधड़ आने दो
 
कुछ और बवंडर लाने दो
 
कुछ और बवंडर लाने दो
नव जीवन में नव यौवन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी
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नवजीवन में नवयौवन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
  
जीवन तो वैसे सबका है, तुम जीवन का श्रिंगार बनो
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जीवन तो वैसे सबका है, तुम जीवन का शृंगार बनो
 
इतिहास तुम्हारा राख बना, तुम राखों में अंगार बनो
 
इतिहास तुम्हारा राख बना, तुम राखों में अंगार बनो
 
अय्याश जवानी होती है
 
अय्याश जवानी होती है
गत वयस कहानी होती है
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गत-वयस कहानी होती है
तुम अपने सहज लड़कपन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी|
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तुम अपने सहज लड़कपन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
 
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19:00, 21 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

कुछ ऐसा खेल रचो साथी!
कुछ जीने का आनंद मिले
कुछ मरने का आनंद मिले
दुनिया के सूने आँगन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

वह मरघट का सन्नाटा तो रह-रह कर काटे जाता है
दुःख दर्द तबाही से दबकर, मुफ़लिस का दिल चिल्लाता है
यह झूठा सन्नाटा टूटे
पापों का भरा घड़ा फूटे
तुम ज़ंजीरों की झनझन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

यह उपदेशों का संचित रस तो फीका-फीका लगता है
सुन धर्म-कर्म की ये बातें दिल में अंगार सुलगता है
चाहे यह दुनिया जल जाए
मानव का रूप बदल जाए
तुम आज जवानी के क्षण में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

यह दुनिया सिर्फ सफलता का उत्साहित क्रीड़ा-कलरव है
यह जीवन केवल जीतों का मोहक मतवाला उत्सव है
तुम भी चेतो मेरे साथी
तुम भी जीतो मेरे साथी
संघर्षों के निष्ठुर रण में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

जीवन की चंचल धारा में, जो धर्म बहे बह जाने दो
मरघट की राखों में लिपटी, जो लाश रहे रह जाने दो
कुछ आँधी-अंधड़ आने दो
कुछ और बवंडर लाने दो
नवजीवन में नवयौवन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !

जीवन तो वैसे सबका है, तुम जीवन का शृंगार बनो
इतिहास तुम्हारा राख बना, तुम राखों में अंगार बनो
अय्याश जवानी होती है
गत-वयस कहानी होती है
तुम अपने सहज लड़कपन में, कुछ ऐसा खेल रचो साथी !