"कुछ तो माँगो आज / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | जब रब ने हमसे कहा, कुछ तो माँगो आज। | ||
+ | तुम्हें माँगकर पा लिया,तीन लोक का राज।। | ||
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+ | मैं तुझमें ऐसे रहूँ,जैसे नीर -तरंग। | ||
+ | आए जो तूफान भी,नहीं छोड़ती संग।। | ||
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+ | सब कुछ पाते लोग हैं, जिसका जैसा भाग। | ||
+ | हमें मिला वरदान में,प्रिय तेरा अनुराग।। | ||
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+ | प्यार किया हमने कभी, चलकर नंगे पाँव। | ||
+ | बिना बात वे जल उठे, जिनको बाँटी छाँव ॥ | ||
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+ | हम तो झरते पात हैं, मंजिल अपनी पास । | ||
+ | जिस दिन हम होंगे नहीं, होना नहीं उदास ॥ | ||
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+ | मूरख बनकर देखते , हम तो सारे खेल। | ||
+ | अंगारों से सींचते , वे रिश्तों की बेल ॥ | ||
+ | 53 | ||
+ | बीच प्रेम जलधार है,हम नदिया के कूल। | ||
+ | मन पर लेना ना कभी,कुछ शब्दों की भूल।। | ||
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+ | मन में उमड़ें भाव से ,शब्द मानते हार। | ||
+ | प्रेम -भाव अतिरेक में,भटकें बारम्बार ।। | ||
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+ | मुझको इतना चाहिए,आकर तेरे द्वार। | ||
+ | अपने सब दुख दान दो,मेरी यही पुकार।। | ||
+ | 156 | ||
+ | मिलते हैं संसार में,सबको लाखों लोग। | ||
+ | तुम-से मिल जाएँ जिसे,यह केवल संयोग। | ||
+ | 57 | ||
+ | कौन बड़ा ,छोटा वहाँ,जहाँ प्रेम- सञ्चार। | ||
+ | मिला नीर से नीर तो,उमगे भाव,विचार। | ||
+ | 58 | ||
+ | वक़्त नहीं, लम्बा सफ़र, मत खोना पल एक। | ||
+ | तुझ पर ही विश्वास है, तुझ पर अपनी टेक। | ||
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+ | कैसे बीते पल ,घड़ी, जब तुम होते मौन। | ||
+ | आहट पर ही कान थे,आई थी बस पौन।। | ||
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+ | अपने तो बनते रहे, पथ में बस अवरोध। | ||
+ | हमसे कुछ भी भूल हो,तुम मत करना क्रोध।। | ||
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20:10, 14 मई 2019 के समय का अवतरण
46
खुशबू चारों ओर से,लेती मुझको घेर।
तुम आए हो द्वार पर,लेकर आज सवेर।।
47
जब रब ने हमसे कहा, कुछ तो माँगो आज।
तुम्हें माँगकर पा लिया,तीन लोक का राज।।
48
मैं तुझमें ऐसे रहूँ,जैसे नीर -तरंग।
आए जो तूफान भी,नहीं छोड़ती संग।।
49
सब कुछ पाते लोग हैं, जिसका जैसा भाग।
हमें मिला वरदान में,प्रिय तेरा अनुराग।।
50
प्यार किया हमने कभी, चलकर नंगे पाँव।
बिना बात वे जल उठे, जिनको बाँटी छाँव ॥
51
हम तो झरते पात हैं, मंजिल अपनी पास ।
जिस दिन हम होंगे नहीं, होना नहीं उदास ॥
52
मूरख बनकर देखते , हम तो सारे खेल।
अंगारों से सींचते , वे रिश्तों की बेल ॥
53
बीच प्रेम जलधार है,हम नदिया के कूल।
मन पर लेना ना कभी,कुछ शब्दों की भूल।।
54
मन में उमड़ें भाव से ,शब्द मानते हार।
प्रेम -भाव अतिरेक में,भटकें बारम्बार ।।
55
मुझको इतना चाहिए,आकर तेरे द्वार।
अपने सब दुख दान दो,मेरी यही पुकार।।
156
मिलते हैं संसार में,सबको लाखों लोग।
तुम-से मिल जाएँ जिसे,यह केवल संयोग।
57
कौन बड़ा ,छोटा वहाँ,जहाँ प्रेम- सञ्चार।
मिला नीर से नीर तो,उमगे भाव,विचार।
58
वक़्त नहीं, लम्बा सफ़र, मत खोना पल एक।
तुझ पर ही विश्वास है, तुझ पर अपनी टेक।
59
कैसे बीते पल ,घड़ी, जब तुम होते मौन।
आहट पर ही कान थे,आई थी बस पौन।।
60
अपने तो बनते रहे, पथ में बस अवरोध।
हमसे कुछ भी भूल हो,तुम मत करना क्रोध।।