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कुछ न माँगे दे के जो, वो प्यार है / हरिराज सिंह 'नूर'
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कुछ न माँगे दे के जो, वो प्यार है।
लेना-देना तो फ़क़त व्यापार है।
जिसने भी दुनियाँ सँवारी, ख़ुद से वो,
मुतमइन, इससे किसे इन्कार है।
व्यर्थ की जो बात करते ही नहीं,
संत हैं, उनका बड़ा उपकार है।
शाप कोई भी हमें दे, दुख नहीं,
स्वप्न करना बस हमें, साकार है।
मुल्क में जो बढ़ रहा है आजकल,
सब कहें वो ‘नूर’ भ्रष्टाचार है।