भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुछ पहले इन आँखों आगे क्या / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ }} Category:गज़ल कुछ पहले इन आँखों आगे क्य...)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
[[Category:गज़ल]]
 
[[Category:गज़ल]]
  
कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था<br>
+
कुछ पहले इन आँखों आगे क्या-क्या न नज़ारा गुज़रे था<br>
 
क्या रौशन हो जाती थी गली जब यार हमारा गुज़रे था<br><br>
 
क्या रौशन हो जाती थी गली जब यार हमारा गुज़रे था<br><br>
  
 
थे कितने अच्छे लोग कि जिनको अपने ग़म से फ़ुर्सत थी<br>
 
थे कितने अच्छे लोग कि जिनको अपने ग़म से फ़ुर्सत थी<br>
सब पूछें थे अहवाल जो कोई दर्द का मारा गुज़रे था<br><br>
+
सब पूछते थे अहवाल जो कोई दर्द का मारा गुज़रे था<br><br>
  
 
अब के तो ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गये<br>
 
अब के तो ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गये<br>
जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ आ के दुबारा गुज़रे था<br><br>
+
जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ-आ के दुबारा गुज़रे था<br><br>
  
थी यारों की बहुतात तो हम अग़यार से भी बेज़ार न थे<br>
+
थी यारों की बहुतायत तो हम अग़यार से भी बेज़ार न थे<br>
 
जब मिल बैठे तो दुश्मन का भी साथ गवारा गुज़रे था<br><br>
 
जब मिल बैठे तो दुश्मन का भी साथ गवारा गुज़रे था<br><br>
  
 
अब तो हाथ सुझाई न देवे लेकिन अब से पहले तो<br>
 
अब तो हाथ सुझाई न देवे लेकिन अब से पहले तो<br>
आंख उठते ही एक नज़र में आलम सारा गुज़रे था
+
आँख उठते ही एक नज़र में आलम सारा गुज़रे था

01:10, 18 मई 2009 के समय का अवतरण

कुछ पहले इन आँखों आगे क्या-क्या न नज़ारा गुज़रे था
क्या रौशन हो जाती थी गली जब यार हमारा गुज़रे था

थे कितने अच्छे लोग कि जिनको अपने ग़म से फ़ुर्सत थी
सब पूछते थे अहवाल जो कोई दर्द का मारा गुज़रे था

अब के तो ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गये
जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ-आ के दुबारा गुज़रे था

थी यारों की बहुतायत तो हम अग़यार से भी बेज़ार न थे
जब मिल बैठे तो दुश्मन का भी साथ गवारा गुज़रे था

अब तो हाथ सुझाई न देवे लेकिन अब से पहले तो
आँख उठते ही एक नज़र में आलम सारा गुज़रे था