भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ शे’र / अली सरदार जाफ़री

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दो शे’र

=

यह है आरज़ू चमन की, कोई लूट ले चमन को

ये तमाम रंगो-नक्‌हत तिरे इख़्तियार में है



तिरे हाथ की बलन्दी में फ़रोगे़-कहकशाँ है

ये हुजूमे-माहो-अंजुम<ref> चाँद और तारों का जमघट</ref>तिरे इन्तिज़ार में है


शब्दार्थ
<references/>

</poem>