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नित मीठे बैन बोलती थी,
नहीं ध्यान बुरा दिल पर लाती |
'''पति -पत्नी वार्ता'''
इक रोज कहा कर जोर दोऊ,
पति भूख से प्राण निकलते हैं,
तुम नमन करो अविनाशी को,
मत करो देर, बस जाय कहो,
सब हाल द्वारिका वासी को | वह सखा आपके प्रेमी हैं, देखत ही सनमान करें,
सब दूर व्यथा हो जावेगी,
कर कृपा तुम्हे धनवान करें | बतियाँ पत्नि की सुनी ब्राह्मण, भयभीत हुआ घबराय गया,बोल व्यथा के सुन श्रवणा, चुप चाप रहा बोला न गया |कुछ देर बाद समझाने को, बोला तू सच तो कहती है,मगर हुआ क्या आज प्रिये, हर रोज हरष से रहती है |ये अश्रु बिंदु किसलिए आज, दुखमयी बात क्यों बोल रही, क्यों तुली कोटि पर माया की, शुभ सुखद ज्ञान को तोल रही |हैं कृष्ण सखा मेरे प्रेमी, धन लाने को कैसे जाऊं,निष्काम भक्ति की अब तक तो, किस भांति स्वार्थ अब अपनाऊँ |है दूर द्वारिका पास नहीं, मैं वृद्ध हुआ अकुलाता हूँ,मग चलने की सामर्थ्य नहीं, इसलिए तुझे समझाता हूँ |है दया देव की अपने पर, इसलिए नहीं धनवान किया, सात्विक भाव ही रहा सदा, प्रिय दिल में कब अरमान किया |
'''सुदामा- द्वारपाल से'''
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