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मानस को तन है तो, मन करके भजो ईश,
अकारण दयालु दाता, सदा शुभकारी है |
श्रद्धा अरु भक्ति से, शक्ति कर अमोघ पैदा,
अनुभव को मार्ग सत्य, मिथ्या संसारी है |
पूर्व जन्म पुण्यहूँ से, मार्ग सुमार्ग मिले,
जन्म-जन्मान्तर की बिगरी सुधारी है |
कहता है सुदामा प्रभु ही प्रतिपाल करे,
उनही को सत्य प्रिया गावे वेद चारि हैं |
जड़ अरु चेतन में प्रभु का प्रकाश प्रिये,
मानव विचित्र खूब बुद्धि के बनाये हैं |
केते हैं भक्त योगी योग में तल्लीन रहते,
केते ही अफंडी बन दुनियां में आये हैं |
केते हैं शरीफ सज्जन जन सुशील शील,
केते ही मानव शुद्ध कृष्ण गुण गए हैं |
कहता सुदामा प्रिये राम-कृष्ण भजे सार,
बात यह विचारि देख वेही सुख पाए हैं |  जो कयम चीज नहीं रहती, उस चीज का मांगना वाम वृथा,जीवन मेरा तो भगवत है, धन माल और आराम वृथा । सब समय हमारा बीत गया, यह चौथापन भी आन चला,श्रीराम कृष्ण रट मगन रहा, दुःख सुख का मुझे पता न चला ।
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