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:::'''सुदामा- द्वारपाल सेवन्दना'''
महाराज कृष्ण क्या करते बन्दहुँ राम जो पूरण ब्रह्म है, है उनसे वे ही त्रिलोकी के ईश कहावें।श्रीगुरु! राह कृपामय हो, काम मेरा भाई।हम पे नज़रें गुण को नित गावें॥हम बचपन के शारद शेष महेश सखा मित्रनमो, वह बलिहारी होते परम गणेश गुरू भाई।। हमेश मनावें।जाकर के उनसे खबर बुद्धि प्रकाश करोघट भीतर, यह हाल बता देना सारा।मैं ब्राह्मण द्रविड़ देश का हूं, दिल ख्याल करा देना सारा।।कृष्ण-सुदामा चरित्र बनावें॥
'''द्वारपालराम- कृष्ण राम जप बावरे साधन यही विवेक।:::इस साधन की ओट से'''तर गए भक्त अनेक॥परम सनेही राम प्रिय सुप्रिय गुरु महाराज।:::चरन परहुँ कर जोर कर वन्दहुँ संत समाज॥प्रभु चरित्र में चित्त रचे जन्म जन्म यहि काम।:::भक्ति सदा सतसंग उर कृपा करहुँ श्रीराम॥बंदहूँ शंकर-सुत हरखि मंगल मयी महेश।:::सकल सृष्टि पूजन करे तुमरी सदा गणेश॥नमन करत हूँ शारदा सकल गुणन की खान:::नमहूँ सुकवि पुनि देव सब चरन कमल को ध्यान॥प्रभु चरित्र आनन्द अति रुचिकर करहूँ बखान।:::जाही सुने चित देय नर पावत पद निर्वाण॥
जा करके द्वारपाल ने जब श्रीकृष्ण चन्द्र से हाल कहा। इक दुर्बल ब्राह्मण खड़ा खड़ा कहता है श्री गोपाल कहां।चाहता है प्रभु से मिलने को प्रभु दर्शन का अनुरागी है।है मस्त गृहस्थ में रह करके जानो सच्चा वैरागी है।। वस्त्र फटे अरु दीन दशा, इक ब्राह्मण दीन पुकारत है।द्वार खड्यो चहुं ओर लखे वह निर्मल नेक कहावत है।।पास नहीं कछु भी धन दौलत बौलत ही मन भावत है। कृष्ण रटे मुख से निशि-वासर नाम लिखूं सुदामा बतावत है।। आप सिवा न चहे अरु को, हम को वह दीखत की कथा यथा बुद्धि है अति ज्ञानी।मोर।हर्ष विषाद नहीं कछु व्यापत, कृष्ण सिवा कछु लाभ न हानी।।है मति शु़द्ध पवित्र महा करहूँ कृपा शिवदीन पर नागर नन्द किशोर॥ अति सार सुधामय बोलत बानी।कौन पता किस ग्राम बसे अरु दीख रहा मति सात्विक प्रानी।।  बहुत मुद्दतों बाद कृष्ण पाया, पाया प्रेमी का ठीक पता। उठ दौड़े, चौके, प्रभु बोले, है कहां सुदामा बता बता। सुनते ही नाम सुदामा का, अति उर में प्रेम उमंग आया। प्रेम प्रभु तो खुद ही थे, हद प्रेम जिन्होंने बरसाया। हाल सुने करुणानिधि ने करुणेश करी करुणा अति भारी,मीत सखा अरु प्रीत सखा सच आवत यों बहु याद तिहारी।मीत बड़े सब जानत आप, बड़े हमसे सुधि लीन हमारी,यों उठ दौरि न ढ़ील करी कित रंक सुदामा व कृष्ण मुरारी। उठ दौडे पैर पयादे ही, झट पट से प्रभु बाहर आये। बोले शुभ दिवस आज का है, हम प्रेमी के दर्शन पाये। प्रीती व रीति न छानी छुपे झट प्रीतम कृष्ण सखा ढिग आये।देखत ही उपज्यो सुख आनन्द वो कविता कवि कौन बनाये।अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये। नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये।   प्रभु मिले गले से गला लगा चरणोदक लीनो धो धोकर। बोले प्रेम भरी वाणी पुछे हरि बतियां रो-रो कर। निज आसन पे बैठा करके सब सामग्री कर में लीनी। चित प्रसन्नता से कृष्ण चन्द्र विविध भांति पूजा कीनी। बोले न मिले अब तक न सखा तुम रहे कहां सुध भूल गये। आनन्द से क्षेम कुशल पूछी प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये। रुक्मणि स्वयं सखियां मिलकर सब प्रेम से पूजन करती थी। स्नान कराने को उनको निज हाथों पानी भरती थी। चंवर मोरछल करते थे सेवा से दिल न अघाते थे। निज प्रेमी के काम कृष्ण सब खुद ही करना चाहते थे। </poem>
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