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"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 13" के अवतरणों में अंतर

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आप सिवा न चहे अरु को, हम को वह दीखत है अति ज्ञानी।
 
आप सिवा न चहे अरु को, हम को वह दीखत है अति ज्ञानी।
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हर्ष विषाद नहीं कछु व्यापत, कृष्ण सिवा कछु लाभ न हानी।।
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है मति शु़द्ध पवित्र महा अति सार सुधामय बोलत बानी।
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कौन पता किस ग्राम बसे अरु दीख रहा मति सात्विक प्रानी।।
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        बहुत मुद्दतों बाद कृष्ण पाया,
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              पाया प्रेमी का ठीक पता ।
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        उठ दौड़े, चौके, प्रभु बोले,
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              है कहां सुदामा बता बता ।
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        सुनते ही नाम सुदामा का,
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              अति उर में प्रेम उमंग आया ।
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        प्रेम प्रभु तो खुद ही थे,
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              हद प्रेम जिन्होंने बरसाया ।
  
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हाल सुने करुणानिधि ने करुणेश करी करुणा अति भारी,
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मीत सखा अरु प्रीत सखा सच आवत यों बहु याद तिहारी।
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मीत बड़े सब जानत आप, बड़े हमसे सुधि लीन हमारी,
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यों उठ दौरि न देर  करी कित रंक सुदामा व कृष्ण मुरारी।
  
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      उठ दौडे पैर पयादे ही,
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                    झट पट से प्रभु बाहर आये।
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          बोले शुभ दिवस आज का है,
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                    हम प्रेमी के दर्शन पाये।
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प्रीती व रीति न छानी छुपे झट प्रीतम कृष्ण सखा ढिग आये।
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देखत ही उपज्यो सुख आनन्द वो कविता कवि कौन बनाये।
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अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये।
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नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये।
 
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20:27, 24 जून 2016 का अवतरण

आप सिवा न चहे अरु को, हम को वह दीखत है अति ज्ञानी।
हर्ष विषाद नहीं कछु व्यापत, कृष्ण सिवा कछु लाभ न हानी।।
है मति शु़द्ध पवित्र महा अति सार सुधामय बोलत बानी।
कौन पता किस ग्राम बसे अरु दीख रहा मति सात्विक प्रानी।।
        
        बहुत मुद्दतों बाद कृष्ण पाया,
              पाया प्रेमी का ठीक पता ।
        उठ दौड़े, चौके, प्रभु बोले,
              है कहां सुदामा बता बता ।
        सुनते ही नाम सुदामा का,
              अति उर में प्रेम उमंग आया ।
        प्रेम प्रभु तो खुद ही थे,
               हद प्रेम जिन्होंने बरसाया ।

हाल सुने करुणानिधि ने करुणेश करी करुणा अति भारी,
मीत सखा अरु प्रीत सखा सच आवत यों बहु याद तिहारी।
मीत बड़े सब जानत आप, बड़े हमसे सुधि लीन हमारी,
यों उठ दौरि न देर करी कित रंक सुदामा व कृष्ण मुरारी।

      उठ दौडे पैर पयादे ही,
                    झट पट से प्रभु बाहर आये।
          बोले शुभ दिवस आज का है,
                    हम प्रेमी के दर्शन पाये।

प्रीती व रीति न छानी छुपे झट प्रीतम कृष्ण सखा ढिग आये।
देखत ही उपज्यो सुख आनन्द वो कविता कवि कौन बनाये।
अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये।
नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये।